योके और सेल्मा
मैंने हाथ खींच लिया और पल-भर उसके चेहरे को देखती रही। मुझे लगा कि उस पर पसीने की बूँदें हैं - ठंडी बूँदें।
उसने कहा, 'शुक्रिया योके, धूप ने आज आना ही चुना है, पर मैं उसे देखना नहीं चुन सकती। उसे भी मेरा शुक्रिया दे दो।'
मैंने कुछ कहना चाहा, लेकिन मुझे कुछ सूझा ही नहीं कि क्या कहा जाए। और वह फिर बोली नहीं - आँखें मूँद पड़ी रही। मैं चुपचाप उसके चेहरे की ओर देखती रही, पर मुझे ध्यान आया कि मुझे वहाँ कुछ करने को नहीं है और मेरे वहाँ खड़े होने का कोई मतलब नहीं है। मैंने उसके कमरे का परदा फिर गिरा दिया और बैठक में आकर उस छोटी होती हुई धूप की थिगली को देखने लगी। इतनी देर में ही उसका आकार बाँका-टेढ़ा होकर सिकुड़ गया था। और एकाएक मुझे लगा कि जिस थिगली को मैं देख रही हूँ वह धूप की नहीं है, फर्श पर पड़े हुए सेल्मा के चेहरे की है।
फर्श पर पड़ा हुआ चेहरा। शरीर से अलग चेहरा-निरा चेहरा, सनातन चेहरा। मैंने मानो ध्रुव सत्य के रूप में जान लिया, वह चेहरा ही सेल्मा है और सेल्मा ही धूप की वह थिगली है जो कभी भी मिट जा सकती है लेकिन फिर भी ज्यों-की-त्यों बनी रहती है क्योंकि उसका होना उसके न होने से अलग नहीं है।
सेल्मा का, सेल्मा के पास कोई इतिहास नहीं है, केवल स्मृति है। सेल्मा भी इतिहास नहीं स्मृति है, शुद्ध स्मृति। वह एक साथ यहाँ भी और अन्यत्र भी जीती है, आज भी और कल भी और सभी दिनों में एक साथ ही जीती है। और इसलिए वह अलग नहीं है, अकेली नहीं है।
और मैं - मैं यहाँ अभी इस क्षण में जीती हूँ - मुझमें स्मृति नहीं है। मुक्त मुझे होना चाहिए, लेकिन मैं इतिहास से क्षयग्रस्त हूँ और अकेली हूँ। मरना सेल्मा को है, मरेगी वह, लेकिन मर रही हूँ मैं, अकेली मैं...
कोई आध घंटे बाद सेल्मा ने पुकारा।
मेरे पास जाने पर बोली, 'मेरी एक विनती है।'
मैंने कहा, 'कहो।'
उसने फिर कहा, 'इसके लिए मैं माफी चाहती हूँ। लेकिन तुम मुझे उठाकर धूप तक ले जा सकती हो। मैं चीखूँ भी तो न सुनना - एक बार -'
मैंने कहा, 'लेकिन सेल्मा, धूप तो चली गयी।'
वह थोड़ी देर चुप रही। फिर बोली, 'यही ठीक है। या कि दूसरा कुछ भी बेठीक होता! जाने दो।'
मुझ पर एकाएक उदासी छा गयी। पहली बार - एक मात्र बार - मुझे लगा कि मेरे मन में बुढ़िया के प्रति करुणा उपजी है। लेकिन फिर एकाएक ही मन कड़ा हो आया। बुढ़िया कैसे कह सकती है यह ठीक ही है, या कि दूसरा कुछ बेठीक होता? यही बात तो बेठीक है - बुढ़िया ही बेठीक है!
एकाएक बुढ़िया ने कहा, 'योके, मैं यह सब एक बार पहले देख चुकी हूँ। इसमें से गुजर चुकी हूँ।'
बुढ़िया की बात मैं नहीं समझ सकी। लेकिन मैंने कुछ कहा नहीं। चुपचाप खड़ी रही। उसी ने फिर कहा, 'वर्षों पहले, यहाँ आने से पहले, जब मैं शहर में थी - यहाँ आये मुझे कोई अट्ठाईस वर्ष हो गये हैं - यह तो तुम्हारे जन्म से पहले की बात होगी -'